शिमला, 20 जून
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने हिमाचल प्रदेश में एक सैन्य इंजीनियर के खिलाफ मामला दर्ज किया है। उसने एक निजी निर्माण ठेकेदार से 10 लाख रुपये के लंबित भुगतान को मंजूरी देने के बदले में 40,000 रुपये की रिश्वत मांगी है। एक अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
एक अधिकारी ने बताया कि शिमला जिले के झाकड़ी में सहायक गैरिसन इंजीनियर (एजीई) (अनुबंध) कुलवंत सिंह मलिक ने हरियाणा स्थित जुपिटर बिल्डर्स के मालिक अरविंद कुमार से कथित तौर पर 40,000 रुपये की रिश्वत मांगी है।
अरविंद कुमार ने 18 जून को सीबीआई, एसीबी, शिमला के समक्ष लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि मलिक छह बिलों के संबंध में तकनीकी मंजूरी देने और अंतिम बिलों के भुगतान के लिए मंजूरी देने तथा 19 जून तक शिकायतकर्ता के लंबित बिलों का भुगतान सुनिश्चित करने के बदले में 40,000 रुपये का अनुचित लाभ/रिश्वत मांग रहा है।
उन्होंने कहा कि उनकी फर्म, जो कि एक ठेकेदार के रूप में पश्चिमी कमान के सैन्य इंजीनियरिंग सेवा के साथ पंजीकृत है, को कुल्लू जिले के अवेरी सैन्य स्टेशन में गेट नंबर 2 और गेट नंबर 3 के पास दो गार्ड रूम का निर्माण कार्य दिया गया था।
दोनों कार्यों की अनुमानित लागत क्रमशः 32 लाख रुपये और 38 लाख रुपये थी। निर्माण कंपनी को ई-टेंडरिंग के माध्यम से अनुबंध दिया गया था।
अरविंद कुमार ने आरोप लगाया कि दिसंबर 2024 में इन कार्यों के पूरा होने के बाद, उनकी कंपनी द्वारा लगभग 5 लाख रुपये प्रत्येक का अंतिम बिल प्रस्तुत किया गया था, और ये अब दिसंबर 2024 से तकनीकी मंजूरी के लिए मलिक के पास लंबित हैं। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, तकनीकी मंजूरी के बाद, इन बिलों को गैरीसन इंजीनियर के कार्यालय द्वारा मुख्य कार्य अभियंता (पहाड़ी), देहरादून को भेजना होता है। ठेकेदार ने आरोप लगाया कि 16 जून को मलिक ने उनसे फोन पर संपर्क किया और कंपनी के पहले से ही तकनीकी रूप से मंजूरी प्राप्त छह बिलों के लिए 40,000 रुपये की एकमुश्त राशि और तकनीकी मंजूरी के बाद लंबित दो अंतिम बिलों को आगे जमा करने की मांग की। बुधवार को ठेकेदार ने सीबीआई से शिकायत की, जिसने उनके आरोपों की पुष्टि की और एक प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार की। सीबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, "18 जून की उपरोक्त शिकायत और सत्यापन रिपोर्ट कुलवंत सिंह मलिक, सहायक गैरीसन इंजीनियर (एजीई) (अनुबंध) के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध का खुलासा करती है।"