नई दिल्ली, 13 अगस्त
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के सह-उधार संबंधी संशोधित दिशानिर्देश प्रकटीकरण आवश्यकताओं को मज़बूत करके और बैंकों व NBFC से परे नियामक निगरानी का विस्तार करके ऋण क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाएँगे, बुधवार को एक रिपोर्ट में कहा गया है।
क्रिसिल रेटिंग्स ने रिपोर्ट में कहा कि सभी प्रकार के ऋण नियामक निगरानी के दायरे में आएँगे, जबकि वर्तमान में केवल प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के ऋण ही नियामक निगरानी के दायरे में आते हैं।
इन निर्देशों में प्रत्येक विनियमित संस्था को अपने खातों में ऋणों का न्यूनतम 10 प्रतिशत हिस्सा बनाए रखना आवश्यक है, जबकि वर्तमान में NBFC के लिए न्यूनतम 20 प्रतिशत जोखिम की आवश्यकता है। इससे विशेष रूप से मध्यम और छोटे आकार की NBFC को लाभ होगा, जिन्हें अधिक वित्तपोषण संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
"इसके अलावा, तिमाही या वार्षिक आधार पर बढ़ी हुई प्रकटीकरण आवश्यकताएँ, जैसे सह-उधार देने वाले भागीदारों की सूची, ब्याज की भारित औसत दर, ली गई या चुकाई गई फीस, डिफ़ॉल्ट हानि गारंटी (डीएलजी) का विवरण, पारदर्शिता में सुधार लाएँगी और सभी हितधारकों को लाभान्वित करेंगी।"
मूल विनियमित संस्थाओं (आरई) को केवल डिजिटल ऋण के बजाय, सभी प्रकार के ऋणों के लिए 5 प्रतिशत तक डीएलजी प्रदान करने की अनुमति देने का प्रावधान, सह-उधार देने वाले भागीदारों के बीच जोखिम और प्रतिफल के बंटवारे को व्यापक बनाएगा। ये निर्देश 1 जनवरी, 2026 से, या किसी भी पूर्व तिथि से लागू होंगे, जैसा कि किसी विनियमित संस्था द्वारा अपनी आंतरिक नीति के अनुसार तय किया गया हो।