मुंबई, 13 अगस्त
बुधवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई द्वारा रेपो दर में की गई कटौती का असर बैंक ऋण दरों और जमा दरों जैसी अन्य दरों पर भी पड़ने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में नरम ऋण दरें जुलाई में भी जारी रहीं, जिससे महीने के दौरान वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ।
क्रिसिल रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, प्रमुख बैंक ऋण दरें, जैसे कि एक वर्षीय सीमांत निधि लागत आधारित ऋण दर (एमसीएलआर) और ऑटो ऋण दर, 15 आधार अंक घटकर क्रमशः 8.75 प्रतिशत और 7 आधार अंक घटकर 9.19 प्रतिशत हो गईं, जबकि जमा दरें 3 आधार अंक घटकर 6.37 प्रतिशत हो गईं, जिससे बैंकों के लिए धन जुटाना सस्ता हो गया।
सरकारी खर्च में वृद्धि और प्रचलन में मुद्रा में गिरावट के कारण जुलाई में प्रणालीगत तरलता अधिशेष में भी मामूली वृद्धि हुई, जिससे मुद्रा बाजार दरें और नीचे आ गईं।
लगातार चौथे महीने, प्रणालीगत तरलता अधिशेष में रही, जो जून की तुलना में जुलाई में थोड़ी बढ़ी। जुलाई में आरबीआई ने 3 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध नकदी अवशोषित की, जो जून के 2.7 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी खर्च में वृद्धि और प्रचलन में मुद्रा में गिरावट से इस उच्च अधिशेष को बल मिला।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अर्थव्यवस्था के लिए एक और सकारात्मक बात यह रही कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और सहयोगी देशों द्वारा तेल उत्पादन बढ़ाने के बीच कच्चे तेल की कीमतें 71.5 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 71 डॉलर प्रति बैरल पर मोटे तौर पर स्थिर रहीं।