नई दिल्ली, 25 जुलाई
शुक्रवार को प्रकाशित अध्ययनों के विश्लेषण के अनुसार, वायु प्रदूषण, जिसमें कार के धुएँ से निकलने वाला उत्सर्जन भी शामिल है, के नियमित संपर्क से मनोभ्रंश का खतरा बढ़ सकता है।
अल्ज़ाइमर रोग जैसी मनोभ्रंश की बीमारियाँ दुनिया भर में 57.4 मिलियन से ज़्यादा लोगों को प्रभावित करती हैं, और 2050 तक यह संख्या लगभग तीन गुना बढ़कर 152.8 मिलियन हो जाने का अनुमान है।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि प्रति घन मीटर PM2.5 के प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम के लिए, किसी व्यक्ति में मनोभ्रंश का सापेक्ष जोखिम 17 प्रतिशत बढ़ जाएगा।
PM2.5 में पाए जाने वाले प्रत्येक 1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर कालिख के लिए, इस संज्ञानात्मक स्थिति का सापेक्ष जोखिम 13 प्रतिशत बढ़ जाता है। कालिख वाहनों के धुएँ से निकलने वाले उत्सर्जन और जलती हुई लकड़ी जैसे स्रोतों से आती है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रथम लेखक डॉ. क्रिस्टियान ब्रेडेल ने कहा, "ये निष्कर्ष मनोभ्रंश की रोकथाम के लिए एक अंतःविषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। मनोभ्रंश की रोकथाम केवल स्वास्थ्य सेवा की ज़िम्मेदारी नहीं है: यह अध्ययन इस बात को पुष्ट करता है कि शहरी नियोजन, परिवहन नीति और पर्यावरण विनियमन, सभी की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।"
वायु प्रदूषण मस्तिष्क में सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव (शरीर में एक रासायनिक प्रक्रिया जो कोशिकाओं, प्रोटीन और डीएनए को नुकसान पहुँचा सकती है) का कारण बनता है, जिससे मनोभ्रंश की शुरुआत और प्रगति होती है।