नई दिल्ली, 28 जुलाई
एक नए अध्ययन के अनुसार, डिमेंशिया से पीड़ित लोगों का निदान लक्षणों के पहली बार दिखाई देने के औसतन 3.5 साल बाद होता है।
डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों में याददाश्त कमज़ोर होना, शब्दों को समझने में कठिनाई, भ्रम और मनोदशा व व्यवहार में बदलाव शामिल हो सकते हैं।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ जेरिएट्रिक साइकियाट्री में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि कम उम्र में डिमेंशिया शुरू होना और फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया होना, दोनों ही निदान में लगने वाले लंबे समय से जुड़े हैं।
जिन लोगों में डिमेंशिया की शुरुआत जल्दी होती है, उनके निदान में 4.1 साल लग सकते हैं, और कुछ समूहों में देरी होने की संभावना ज़्यादा होती है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख लेखक डॉ. वासिलिकी ओरगेटा ने कहा, "मनोभ्रंश का समय पर निदान एक बड़ी वैश्विक चुनौती बनी हुई है, जो कई जटिल कारकों से प्रभावित है, और इसे सुधारने के लिए विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता है। समय पर निदान से उपचार तक पहुँच में सुधार हो सकता है और कुछ लोगों के लिए, लक्षणों के बिगड़ने से पहले हल्के मनोभ्रंश के साथ जीने का समय बढ़ सकता है।"
अध्ययन के लिए, यूसीएल के शोधकर्ताओं ने यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन में हुए 13 पूर्व प्रकाशित अध्ययनों के आँकड़ों की समीक्षा की, जिसमें 30,257 प्रतिभागियों के आँकड़े शामिल थे।
मनोभ्रंश एक बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जो दुनिया भर में 57 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित कर रही है। अध्ययनों का अनुमान है कि उच्च आय वाले देशों में केवल 50-65 प्रतिशत मामलों का ही निदान हो पाता है, और कई देशों में निदान दर और भी कम है।