नई दिल्ली, 1 मई
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के ऑन्कोलॉजिस्ट द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के अनुसार, कैंसर देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को एकीकृत करना महत्वपूर्ण है और इससे जीवित बचे लोगों और देखभाल करने वालों दोनों के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलेगा।
एशियन पैसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन में प्रकाशित यह अध्ययन कैंसर से बचे लोगों और उनकी देखभाल करने वालों द्वारा सामना किए जाने वाले महत्वपूर्ण लेकिन कम पहचाने जाने वाले मनोवैज्ञानिक संघर्षों पर प्रकाश डालता है।
शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने से कहीं अधिक, कैंसर का निदान भय, अनिश्चितता, चिंता और अवसाद को बढ़ाता है - ये सभी न केवल रोगियों के लिए बल्कि देखभाल करने वालों के जीवन की गुणवत्ता को भी गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।
दिल्ली के एम्स में डॉ बीआर अंबेडकर इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर अस्पताल के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर, संबंधित लेखक डॉ अभिषेक शंकर ने बताया, "हम नियमित ऑन्कोलॉजी सेवाओं में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को एकीकृत करने, मनो-ऑन्कोलॉजी तक पहुंच का विस्तार करने और देखभाल करने वालों की जरूरतों को पहचानने की वकालत करते हैं।"
अध्ययन में पाया गया कि एक बार जब मरीज़ इलाज करवा लेते हैं, तो उन्हें कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि दीर्घकालिक दुष्प्रभावों का प्रबंधन करना, नई शारीरिक सीमाओं के साथ तालमेल बिठाना। वे जीवन को बदलने वाले एक गंभीर अनुभव के बाद पहचान की भावना को फिर से बनाने के लिए भी संघर्ष करते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है।