नई दिल्ली, 1 अगस्त
मोहाली की विशेष सीबीआई अदालत ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फ़ैसले में, 1993 में सात लोगों की फर्जी हत्याओं से जुड़े दशकों पुराने फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में पंजाब पुलिस के पाँच सेवानिवृत्त अधिकारियों को दोषी ठहराया।
अदालत ने उन्हें आपराधिक साज़िश, अपहरण और न्यायेतर हत्याओं का दोषी पाया। दोषी ठहराए गए लोगों में भूपिंदरजीत सिंह (सेवानिवृत्त एसएसपी), देविंदर सिंह (सेवानिवृत्त डीएसपी), गुलबर्ग सिंह (सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर), सूबा सिंह (सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर) और रघुबीर सिंह (सेवानिवृत्त सब-इंस्पेक्टर) शामिल हैं।
सजा की अवधि 4 अगस्त, 2025 को घोषित की जाएगी। यह मामला 27 जून 1993 का है, जब पंजाब पुलिस के विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) शिंदर सिंह, सुखदेव सिंह और देसा सिंह का सिरहाली थाना के तत्कालीन एसएचओ इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह के नेतृत्व वाली एक टीम ने अपहरण कर लिया था।
उसी दिन, एक अन्य व्यक्ति बलकार सिंह उर्फ काला का भी अपहरण कर लिया गया था। जुलाई 1993 में, सरबजीत सिंह उर्फ सबा और हरविंदर सिंह का वेरोवाल थाना के तत्कालीन एसएचओ सूबा सिंह ने अपहरण कर लिया था। 12 जुलाई 1993 को, शिंदर सिंह, देसा सिंह, बलकार सिंह और मंगल सिंह नामक एक व्यक्ति की डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह और सिरहाली थाना पुलिस टीम द्वारा कथित तौर पर कराई गई एक फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद, 28 जुलाई 1993 को सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह को भी इसी तरह उसी डीएसपी और पुलिस स्टेशन वेरोवाल के कर्मियों द्वारा एक फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया।
श्रीमती परमजीत कौर द्वारा दायर एक आपराधिक रिट याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद, केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने 30 जून, 1999 को मामला दर्ज किया।
2002 में दस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था, जिनमें से पाँच की लंबी सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।
इस फैसले को 1990 के दशक की शुरुआत में पंजाब के अशांत काल के दौरान मानवाधिकारों के हनन के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है।