पटना, 22 जुलाई
पटना की एक विशेष सीबीआई अदालत ने मंगलवार को भारतीय डाक विभाग के एक लेखाकार को दूसरे सरकारी विभाग से तीन साल तक वेतन लेने के जुर्म में दो साल के कठोर कारावास (आरआई) और 1.10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
लोहरा भगत जुलाई 2010 और जुलाई 2013 तक डाक विभाग में वरिष्ठ लेखाकार और बिहार राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग, पटना के उप-अध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे।
इन तीन वर्षों के दौरान, उन्होंने भारत सरकार के डाक विभाग से 3,41,444 रुपये का वेतन और बिहार सरकार से 14,87,591 रुपये और अन्य विविध खर्च, जैसे कि 32,850 रुपये प्रति माह का लीज वाहन, प्राप्त किया।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने 31 मार्च, 2014 को लोहरा भगत और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया।
यह कार्यवाही एक शिकायत के आधार पर शुरू हुई जिसमें आरोप लगाया गया था कि लोहरा भगत ने वर्ष 2010-2013 के दौरान डाक विभाग, पटना के लेखा निदेशक कार्यालय में वरिष्ठ लेखाकार के पद पर कार्यरत रहते हुए, स्वयं को बिहार सरकार के अनुसूचित जनजाति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त करवाया।
उन्होंने जाली दस्तावेजों का उपयोग करके तीन वर्षों तक बिहार सरकार के अनुसूचित जनजाति आयोग में भी कार्य किया और अपना नाम ललित भगत रख लिया।
सीबीआई ने कहा कि इस प्रकार, उन्होंने दोनों पदों का आनंद लिया और दोनों विभागों से वेतन प्राप्त किया।
जांच के दौरान, यह पता चला कि लोहरा भगत और ललित भगत एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं।
न्यायालय ने माना कि लोहरा भगत उर्फ ललित भगत ने अपने उपरोक्त कार्यों से भारत सरकार और बिहार सरकार दोनों को धोखा दिया और क्रमशः 3,41,444 रुपये और 14,87,591 रुपये का गलत नुकसान पहुँचाया और स्वयं को भी इसी प्रकार का लाभ पहुँचाया।
जाँच के बाद, सीबीआई ने 31 मार्च, 2015 को आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया।
विशेष न्यायालय ने आरोपी के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उसे तदनुसार सजा सुनाई।
जाँच के दौरान, सीबीआई ने बिहार सरकार के उन अधिकारियों की भूमिका की भी जाँच की, जिन्होंने डाक विभाग के कर्मचारी को जाली दस्तावेजों के आधार पर अनुसूचित जनजाति आयोग में नियुक्ति दिलाने में मदद की थी।