नई दिल्ली, 11 अगस्त
सोमवार को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की वित्तीय समावेशन योजनाएँ - प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) से लेकर मुद्रा और यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान तक - भारत की विकास गाथा को महानगर-केंद्रित से पूरी तरह राष्ट्रीय स्तर पर ले जा रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, "आर्थिक विकास केवल कुछ शहरों और कुछ नागरिकों तक ही सीमित नहीं रह सकता। विकास सर्वांगीण और सर्वसमावेशी होना चाहिए।"
इंडिया नैरेटिव की रिपोर्ट के अनुसार, "व्यवहार में, यह समावेशन केवल बयानबाजी से नहीं, बल्कि नीति, तकनीक और सामुदायिक पहुँच को जानबूझकर एक अभूतपूर्व पहुँच के जाल में पिरोने से प्रेरित हुआ है।"
2021 में लॉन्च किया गया, वित्तीय समावेशन सूचकांक बैंकिंग, बीमा, पेंशन, निवेश और डाक सेवाओं सहित 97 संकेतकों पर आधारित है।
इसके तीन उप-सूचकांक - पहुँच, उपयोग और गुणवत्ता - न केवल बुनियादी ढाँचे के विस्तार को मापते हैं, बल्कि यह भी मापते हैं कि लोग वास्तव में वित्तीय उत्पादों का उपयोग करते हैं या नहीं और क्या वे उन्हें समझते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, "कार्यान्वयन अपने पैमाने में आश्चर्यजनक रहा है। अकेले प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) ने 55.98 करोड़ (560 मिलियन) लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा है, जिनमें से आधे से ज़्यादा महिलाएँ हैं। 13.55 लाख (1.35 मिलियन) 'बैंक मित्रों' - स्थानीय बैंकिंग संवाददाताओं - का एक नेटवर्क अब दूर-दराज के गाँवों तक सेवाएँ पहुँचा रहा है।"